Should we make Taziya, it is whether right or not
ڈهول تاشے سے محرم کو منانے والے
غم سے شہداء کی بڑی دهوم مچانے والے
ढोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले
गम से शुहदा की बड़ी धूम मचाने वाले
تعزیہ اور سواری کے اٹهانے والے
باگھ اور شیر کو نچانے والے
ताज़िया और सवारी के उठाने वाले
बाघ और शेर को नचाने वाले
چاند جب ماہ محرم کا نظر آتا ہے
کیا تیرے جسم میں شیطان اتر آتا ہے
चाँद जब माहे मुहर्रम का नज़र आता है
क्या तेरे जिस्म में शैतान उतर आता है
غم جنهیں ہوتا ہے وہ ڈهول بجاتے ہیں کہیں
دوسروں کی طرح تہوار مناتے ہیں کہیں
गम जिन्हें होता हे वह ढोल बजाते हैं कहीं
दूसरो की तरह तहवार मनाते हैं कहीं
وہ خرافات کا بازار لگاتے ہیں کہیں
ڈهول باجے سے بهی میت کو اٹهاتے ہیں کہیں
वो खुराफात का बाजार लगाते हैं कहीं
ढोल बाजे से भी मय्यत को उठाते हैं कहीं
کیا شریعت میں تمهارے اسے غم کہتے ہیں
غم یہی ہے تو خوشی اور کسے کہتے ہیں
क्या शरीअत में तुम्हारी इसे गम कहते हैं
गम यही हे तो ख़ुशी और किसे कहते हैं
تعزیہ داری کو تیمور نے ایجاد کیا
لایا ایران سے اور ہند میں آباد کیا
ताज़िया दारी को तैमूर ने ईजाद किया
लाया ईरान से और हिन्द में आबाद किया
غم منانے کا عجب ڈهنگ یہ ایجار کیا
روح اسلام کو تیمور نے برباد کیا
गम मनाने का अजब ढंग ये ईजाद किया
रूह ए इस्लाम को तैमूर ने बर्बाद किया
فعل تیمور ہے یہ قول پیمبر تو نہیں
غم کا یہ رنگ شریعت کے برابر تو نہیں
फाल तैमूर हे यह कौल ए पयम्बर तो नहीं
गम का यह रंग शरीअत के बराबर तो नही
خوب ہے ابن علی سے یہ محبت تیری
ساری دنیا سے نرالی ہے عقیدت تیری
खूब हे इब्न ए अली से यह मुहब्बत तेरी
सारी दुन्या से निराली है अक़ीदत तेरी
تعزیہ اور سواری ہے عبادت تیری
عشق بازی کی محرم میں ہے عادت تیری
ताज़िया और सवारी हे इबादत तेरी
इश्क़ बाज़ी की मुहर्रम में हे आदत तेरी
غم تجهے ہے تو ذرا اتنا ہی کر کے بتلا
ڈهول تاشے سے ذرا باپ کی میت کو اٹها
गम तुझे है तो ज़रा इतना ही कर के बतला
ढोल ताशे से ज़रा बाप की मय्यत को उठा!
غم سے شہداء کی بڑی دهوم مچانے والے
ढोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले
गम से शुहदा की बड़ी धूम मचाने वाले
تعزیہ اور سواری کے اٹهانے والے
باگھ اور شیر کو نچانے والے
ताज़िया और सवारी के उठाने वाले
बाघ और शेर को नचाने वाले
چاند جب ماہ محرم کا نظر آتا ہے
کیا تیرے جسم میں شیطان اتر آتا ہے
चाँद जब माहे मुहर्रम का नज़र आता है
क्या तेरे जिस्म में शैतान उतर आता है
غم جنهیں ہوتا ہے وہ ڈهول بجاتے ہیں کہیں
دوسروں کی طرح تہوار مناتے ہیں کہیں
गम जिन्हें होता हे वह ढोल बजाते हैं कहीं
दूसरो की तरह तहवार मनाते हैं कहीं
وہ خرافات کا بازار لگاتے ہیں کہیں
ڈهول باجے سے بهی میت کو اٹهاتے ہیں کہیں
वो खुराफात का बाजार लगाते हैं कहीं
ढोल बाजे से भी मय्यत को उठाते हैं कहीं
کیا شریعت میں تمهارے اسے غم کہتے ہیں
غم یہی ہے تو خوشی اور کسے کہتے ہیں
क्या शरीअत में तुम्हारी इसे गम कहते हैं
गम यही हे तो ख़ुशी और किसे कहते हैं
تعزیہ داری کو تیمور نے ایجاد کیا
لایا ایران سے اور ہند میں آباد کیا
ताज़िया दारी को तैमूर ने ईजाद किया
लाया ईरान से और हिन्द में आबाद किया
غم منانے کا عجب ڈهنگ یہ ایجار کیا
روح اسلام کو تیمور نے برباد کیا
गम मनाने का अजब ढंग ये ईजाद किया
रूह ए इस्लाम को तैमूर ने बर्बाद किया
فعل تیمور ہے یہ قول پیمبر تو نہیں
غم کا یہ رنگ شریعت کے برابر تو نہیں
फाल तैमूर हे यह कौल ए पयम्बर तो नहीं
गम का यह रंग शरीअत के बराबर तो नही
خوب ہے ابن علی سے یہ محبت تیری
ساری دنیا سے نرالی ہے عقیدت تیری
खूब हे इब्न ए अली से यह मुहब्बत तेरी
सारी दुन्या से निराली है अक़ीदत तेरी
تعزیہ اور سواری ہے عبادت تیری
عشق بازی کی محرم میں ہے عادت تیری
ताज़िया और सवारी हे इबादत तेरी
इश्क़ बाज़ी की मुहर्रम में हे आदत तेरी
غم تجهے ہے تو ذرا اتنا ہی کر کے بتلا
ڈهول تاشے سے ذرا باپ کی میت کو اٹها
गम तुझे है तो ज़रा इतना ही कर के बतला
ढोल ताशे से ज़रा बाप की मय्यत को उठा!